Friday 24 September 2010

मेरा नाम हरी मटर

ताज़ी-ताजी सी हरी मटर
मैं खाई जाती हूँ सबके घर
जब सर्दी का मौसम है आता
हर कोई तब मुझको खाता

जब कोई जाता है बाज़ार
थैला भर लाता है हर बार
फिर छीलें हैं सब मिलकर
मैं उछल के आती हूँ बाहर

दाने बिखर-बिखर जब जाते
मुझे उठा सभी चबा जाते
पकने तक ना करते इंतज़ार
खाने को सब रहते बेकरार

आलू मटर की सादी सब्जी
हर घर में है बन जाती
मटर-मूंग को पीसो साथ
तो बनें कोफ्ते मेरे ख़ास.

सूप बना लो डाल पोदीना
फिर धीरे-धीरे उसको पीना
मटर-पनीर सभी को भाये
खाने को उसे मन ललचाये.

गोभी-आलू के संग तरकारी
और रोटी साथ में खाओ करारी
आलू की टिक्की में भरो मटर
खाओ चटनी संग चटर-पटर.

कभी बनाओ अगर कचौरी
पिट्ठी भर दो उसमें मेरी
भरो समोसे के भी अंदर
गाजर के संग लगती सुंदर.

मशरूम को डाल बने पुलाव
सबको उससे रहे लगाव
पालक के संग यदि बनें कबाब
खाने में उनका नहीं जबाब.

सलाद में खाओ मुझे उबाल
तो अच्छे रहते सबके हाल
और टमाटर संग बनाओ
तो हो जाता है बहुत कमाल.

पौष्टिकता से भरा है मेरा तन
जैसे ए, बी, सी, और आयरन
प्रोटीन, फाइबर, पोटासियम
जिंक, कॉपर, और मैग्नेशियम.

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