Thursday 23 September 2010

देखो बच्चों

देखो, देखो, देखो बच्चों
देखो चाँद सितारों को
निरख रही हैं सभी
दिशाएँ देखो उन सब चारों को

धरती उपजाती है अन्न
माँ हम उसको हैं कहते
सहती रहती सारे बोझे
हम सब उस पर ही रहते

रात में चमकें चंदा तारे
चमक चांदनी आती है
दिन में फिर सूरज निकले
तो किरने भी मुस्काती हैं

सूरज से गर्मी मिलती है
चंदा से मिलती शीतलता
गंगा का पावन जल देता
सबके मन को निर्मलता

पत्थर से कठोर बनो ना
फूलों से सीखो कोमलता
ना करो घमंड कभी पैसे का
बेबस होती कितनी निर्धनता

सीख-सीख अच्छी बातों को
करो सार्थक जीवन को अपने
संस्कार अच्छे हों तब ही तुम
पूरे कर पाओगे अपने सपने

झगड़ा कभी न करो किसी से
और बुराई करना भी छोड़ो
कभी जरूरत पड़े अगर तो
कर्तव्यों से ना मुंह मोडो

हर दिन कुछ नया सीखकर
आशाओं को जी लो तुम
फूलो से खिलकर मुस्काओ
कभी ना रहना फिर गुमसुम

करो सार्थक यह जीवन अपना
सीखो तुम सब अपनी भूलों से
निश्छल होकर कुछ देना सीखो
धरती नदिया, और फूलों से.

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