Friday 24 September 2010

चील और खरगोश

प्यारे बच्चों, आओ आज तुम्हे एक मजेदार छोटी कहानी सुनाती हूँ जिससे कुछ सबक भी सीखा जा सकता है.

एक दिन एक छोटा सा खरगोश कहीं जा रहा था. रास्ते में तमाम खेत पड़े तो वह उन खेतों में बड़ी बेफिक्री से उछलते-कूदते चलने लगा कि अचानक उसकी निगाह एक पेड़ पर बैठी हुई एक आलसी चील पर पड़ी जो वहाँ बैठ कर आराम कर रही थी. खरगोश वहीं रुक गया और उसने चील से पूछा, '' चील जी, आप वहाँ बैठी क्या कर रही हैं.'' तो चील ने उत्तर दिया, '' खरगोश भाई, मेरा मन आराम करने को किया तो मैं यहाँ ऊपर बैठ कर आराम कर रही हूँ, उड़ते-उड़ते बहुत थक गयी हूँ.'' खरगोश बोला, '' मैं भी बहुत थक गया हूँ लेकिन मैं आराम करने के लिये तुम्हारे पास इतने ऊपर नहीं पहुँच सकता क्या मैं यहाँ पेड़ के नीचे बैठ कर आराम कर सकता हूँ?'' चील ने कहा, '' हाँ, हाँ, क्यों नहीं, मुझे तो ऊपर बैठ कर आराम मिल रहा है पर तुम नीचे ही बैठ कर आराम कर लो.'' भोला-भाला खरगोश वहीं पेड़ के नीचे आँखें बंद करके लेट गया और जरा सी देर में ही उसे ठंडी हवा में नींद आ गयी. कुछ देर में एक लोमड़ी उधर से गुजरी और उस सोते हुये खरगोश को देखा तो उसे झपट्टा मार कर दबोच लिया और फटाफट खा गयी. बेचारा खरगोश!!

तो बच्चों इस कहानी से क्या मतलब निकाला आपने? चलो मैं ही बता देती हूँ..वह यह कि दूसरों की नकल करने के लिये उनसे सलाह माँगते समय स्वयं भी अपने बारे में सोचना चाहिये कि किसी की नक़ल करने का परिणाम गलत भी हो सकता है..जैसे की चील की सलाह पर खरगोश अपनी जान गँवा बैठा.

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