Monday 5 December 2011

होली आई है

होली आई फिर से देखो
रंगों की भरमार है
खुशियों के फब्बारे छूटें
गलिओं में चीख-पुकार है l

आओ मन की जलधारा में
हम इन रंगों को घोलें
ऊँच-नीच का भेद भूल कर
आओ हम होली खेलें l

सुबह से लेकर शाम तक
रंगों से आँख मिचौली हो
घर बाहर लोग मिलें सब
आपस में हँसी-ठिठोली हो l

रंगों की पिचकारी भर-भर
डाल रहे एक दूजे पर
छत पर से भी फेंक रहे हैं
रंगों को सब के ऊपर l

ऐसे ही रंग भरें जीवन में
प्रेम भावना हम सब रखें
कष्ट न दें कभी किसी को
और ना हों फिर कोई दंगें l

मानवता और दया भावना
हो हर जन के ही मन में
खुशियाली छा जायेगी तब
सबके घर और आँगन में l

कपडे पहन के नये-नये
साथ में मिल गुझियाँ खायें
होली का आगमन हुआ है
आओ हम त्यौहार मनायें l

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