Monday 5 December 2011

मत रो

रो मत प्यारे मुन्ने जिद नहीं किया करते
छोटी-छोटी बातों पर रोया कभी नहीं करते l

आँखों का तारा है तू घर-भर का है लाडला
रोकर कैसा हाल बनाया कैसा है तू वावला l

चल चलते हैं मेले में दोनों ही मौज उड़ायेंगे
कुल्फी खाकर वापस घर कुछ गुब्बारे लायेंगे l

आलू-टिक्की, पानी-पूरी और कैंडी भी खायेंगे
झूले में जब बैठेंगे तो गला फाड़ चिल्लायेंगे l

अब ना कोई डांटेगा जाकर तू आँसू पोंछ ले
रसगुल्ले भी हम खायेंगे इतना भी सोच ले l

सर्कस में जब जोकर मारेगा सीटी जोर की
सब बच्चों को बाँटेगा गोली वह मीठी-मीठी l

मस्ती करके मेले में हम घर वापस आयेंगे
ढेरों खेल खिलौने भी हम खरीद कर लायेंगे l

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