Monday 5 December 2011

मोह की बेड़ी

प्यारी-प्यारी सी आवाजें करती
कभी देख-देख मुस्काती है
कुछ कहने की कोशिश करती
कभी घबराकर कर रो जाती है l

मचल-मचल कर जो भी चाहती
अपने ढंग से समझाती है
दादी उसकी ले खूब बलैयाँ
और दिन भर उसे खिलाती है l

बोतल से जब दूध वो पीती
तो कभी हटा हाथ से है देती
दांत अभी तक एक न निकला
पर बिस्कुट वो कुट-कुट खाती l

जरा-जरा सी बात में उसके
आ जाते हैं आँखों में आँसू
अधिक प्यार आ जाने पर
कर देती है वह सब पर सू-सू l

हाथों में अखबार भींचकर
मुँह में जायका लेती उसका
घर भर की नन्ही सी आशा
नाम है उसका अनूशका l

वो जो भी चीज देख लेती है
तो लेती समझ उसे खिलौना
चाट-चाट कर मुँह बनता है
फिर चालू करती रोना-धोना l

सबकी गोद चली जाती है
इतनी लगती है प्यारी-प्यारी
बाबा जब बंदर दिखलायें
तो मारे जोर की किलकारी l

भाई उसका देखे जब टीवी
तब उस पर वह गुर्राती है
और बंद करो यदि टीवी फिर
रो - रोकर शोर मचाती है l

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