Monday 5 December 2011

दूल्हा-घोड़ा

शादी का मौसम आया जब
तो एक दिन न्योता भी आया
मम्मी ने बिटिया को उस दिन
सुंदर से कपड़ों को पहनाया l

बिटिया के मन में था कौतूहल
शादी में जाकर वह देखेगी क्या
दूल्हा होती है क्या चीज़ और
क्या होता है यह शादी-ब्याह l

पहली बार जब उस दिन उसने
किसी की देखी जाती बारात
वह इतनी भोली-भाली सी थी
कि समझ ना पायी पूरी बात l

धूम-धड़ाके से बाराती निकले
और दूल्हे को घोड़े पर लादा
घोड़ा हांफे जाये और उस पर
दूल्हा बैठा जैसे हो शहजादा l

गाजा-बाजा शोर-शराबा पर
दिया ना उसने कोई ध्यान
लगातार ही देख रही थी वह
घोड़े को इतना होकर हैरान l

घोड़ा भी थोड़ा सजा हुआ था
दूल्हे का ढंका था पूरा चेहरा
कर ना पाई पहचान वह ढंग से
चेहरे पर पड़ा हुआ था सेहरा l

चकित हुई वह देख रही थी
दोस्तों के संग सारा हंगामा
भीड़-भाड़ में कहीं खो ना जाये
सोचके हाथ मम्मी का थामा l

पहुँच गयी जब बारात दूर बहुत
तब फिर होश में वह आई थोड़ा
मम्मी ने पूछा कैसा लगा दूल्हा
बेटी बोली 'अच्छा था दूल्हा-घोड़ा l

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