मैं आलू हूँ भई, मैं आलू हूँ
सीधा - साधा गोल - मटोल
स्वाद में सबसे हूँ आला
अधिक ना होता मेरा मोल
मुझको खायें सभी स्वाद से
राजा - रानी हों या हों फ़कीर
मैं सभी सब्जियों का हूँ राजा
छोटा - बड़ा है मेरा शरीर
उगता हूँ जमीन के अन्दर
ले जाते सब मुझको तोल
हर गरीब का पेट भरूँ मैं
ना कभी बड़े मैं बोलूँ बोल
कुत्ता, बन्दर हो या इंसान
सभी को ही मैं भाता हूँ
डाल टमाटर मुझे पकाओ
तो सब्जी मैं बन जाता हूँ
माँ दीदी हो या फिर पापा
बाबू , अफसर हों या लालू
उँगली सभी चाट जाते हैं
चटनी डालो बनूँ कचालू
कभी पकौड़ा बन तल जाता
कभी भून भरता बन जाता
भर दो यदि लोई के अन्दर
तो आलू की पूरी कहलाता
मेरे ही गुण - गान करें सब
चिप्स बने या बने समोसा
आलू की टिक्की में होता
या फिर भर के बनता दोसा
हर दावत में धाक है मेरी
हर बच्चे की मैं चाहत हूँ
बिन मेरे है नीरस भोजन
मैं हर खाने में राहत हूँ
चाट का ठेला ले आते हैं
हर दिन ही जब भैया कालू
सुनकर हाँक सभी फिर आयें
चाहें हो कोई कितना टालू.
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