Monday 5 December 2011

मस्ती का दिन

अक्कड़-बक्कड़ बम्बे वो

अस्सी, नब्बे, पूरे सौ

बालदिवस का दिन आया है

नेहरु चाचा की जय हो l

डांट-डपट, सख्ती को छोड़ो

ना गुस्सा कोई दिल में हो

आज के दिन मम्मी-पापा

कुछ मस्ती हमको करने दो l

हम सब नन्हे-मुन्ने से दीपक

प्यार हमें तुम जी भर दो

होंगे बड़े किसी दिन जब हम

तो देश हमी से उज्जवल हो l

बालदिवस

सभी बच्चे एक जैसे ही तो होते हैं
एक सा हँसते हैं और एक सा रोते हैं l

वो सभी देखते हैं एक जैसे सपने
कुछ के पूरे होते हैं बाकी अधूरे होते हैं l

माँ-बाप का प्यार भी एक सा होता है
उनके बच्चे उनकी आँखों का नूर होते हैं l

कुछ बसर करते हैं आराम की जिंदगी
कुछ मेहनत-मजदूरी कर रात में सोते हैं l

बच्चों के लिये लोग माँगते हैं मन्नत
पर कुछ बच्चे अनचाहे ही पैदा होते हैं l

मोह की बेड़ी

प्यारी-प्यारी सी आवाजें करती
कभी देख-देख मुस्काती है
कुछ कहने की कोशिश करती
कभी घबराकर कर रो जाती है l

मचल-मचल कर जो भी चाहती
अपने ढंग से समझाती है
दादी उसकी ले खूब बलैयाँ
और दिन भर उसे खिलाती है l

बोतल से जब दूध वो पीती
तो कभी हटा हाथ से है देती
दांत अभी तक एक न निकला
पर बिस्कुट वो कुट-कुट खाती l

जरा-जरा सी बात में उसके
आ जाते हैं आँखों में आँसू
अधिक प्यार आ जाने पर
कर देती है वह सब पर सू-सू l

हाथों में अखबार भींचकर
मुँह में जायका लेती उसका
घर भर की नन्ही सी आशा
नाम है उसका अनूशका l

वो जो भी चीज देख लेती है
तो लेती समझ उसे खिलौना
चाट-चाट कर मुँह बनता है
फिर चालू करती रोना-धोना l

सबकी गोद चली जाती है
इतनी लगती है प्यारी-प्यारी
बाबा जब बंदर दिखलायें
तो मारे जोर की किलकारी l

भाई उसका देखे जब टीवी
तब उस पर वह गुर्राती है
और बंद करो यदि टीवी फिर
रो - रोकर शोर मचाती है l

होली का त्योहार

फागुन का महीना आया
मौसम ने फिर रंग बिखराया
रंगबिरंगे चेहरों ने मिल
गलियों में फिर शोर मचाया
होली का त्योहार है आया l


ढोल-मृदंग बज रहे जमकर
सब रंग फेंक रहे दूजे पर
कड़वाहट की जगह प्यार ने
सबको फिर से गले मिलाया
होली का त्योहार है आया l


हर घर में पकवान बने हैं
खाने को मेहमान ठने हैं
सबने एक साथ बैठकर
पकवानों को मिलकर खाया
होली का त्योहार है आया l


रंग भरे चेहरों को धोकर
ऊँच-नीच का भेद भूलकर
अपनेपन का एक अनोखा
यह दिन है परिवर्तन लाया
होली का त्योहार है आया l


रंग गुलाल की छींटों ने सारा
घर-आँगन का रूप निखारा
अलसाई सी फैली है धूप
शाखों पर यौवन मदमाया
होली का त्योहार है आया l

मौसम सर्दीला है

मौसम कितना बदल गया
हर पत्ता दिखता पीला है
आँसू सी बूँदें गिरती रहतीं
सब लगता गीला-गीला है l

टहनी पर चिड़ियाँ बैठीं कांपें

जब सर्द हवा चल पड़ती है
लकड़ी-पत्तों का ढेर लगा
तब आग अलाव में जलती है l

जब कंपित होता अंग-अंग
पशु-पक्षी भी छुप जाते हैं
कुछ इधर-उधर भटक-भटक
आश्रय विहीन रह जाते हैं l

तब खाना संचित करने को
कुछ पक्षी भी नीड़ बनाते हैं

और ढूँढ-ढूँढ तिनके टहनी

सर्दी का समय बिताते हैं l

चुकंदर की चाट

आया होगा मजा सभी को
जिसने भी है इसको खाया
जान के सभी तरीके इसके
हर ढंग से होगा आजमाया l


हो सलाद या फिर पुलाव में
कूल रायता या गरम पकौड़े
सब लोग चाव से खाते हैं
बच्चे भी आते हैं दौड़े-दौड़े l


आज चलें चटनी जी के घर
बनी वहाँ चुकंदर की चाट
बड़े प्रेम से दिया निमंत्रण
खायेंगे हम सब मिल-बाँट l

दीप जलें

आओ मिलकर दीप उठाकर

साथ चलें

घर-बाहर कर दें रोशन सारा

दीप जलें l

घर-घर में उमंग छाई, आई

फिर बहार

तम दूर करें ज्योति जले, करें

धरती का श्रृंगार l

नूतन आशा से मन हों पावन

अब मिलकर

निर्मलता का दीपक हो प्रज्वलित

सबके अन्दर l

ना हो बैर भावना, ना फैलायें

कोई अशांति

ना कोई नफरत या भेद-भाव

ना मचे क्रांति l

सुख-सौरभ की करें कामना

नभ के तले

जग-जीवन में प्रेम के दीपक

सदा जलें l

आओ हाथों में दीप उठाकर

साथ चलें

घर-बाहर कर दें रोशन सारा

दीप जलें l

छुट्टी के दिन

अक्कड़-बक्कड़ बम्बे वो

छुट्टी के दिन आते हैं

सैर-सपाटा करने को I

ना होमवर्क अब करना है

ना टीचर से अब डरना है

डांट नहीं खाने की दिक्कत

सजा नहीं कोई होगी अब

ना टीचर की सुननी बकबक

सब दूर रहेगा कुछ दिन को I

अक्कड़-बक्कड़ बम्बे वो

छुट्टी के दिन आते हैं

सैर-सपाटा करने को l

दोस्तों संग जमकर घूमो

डिस्को में जाकर झूमो

पिक्चर को भी देखो जाकर

पॉपकार्न सब खाओ मिलकर

पार्टी, पिकनिक के दिन आये

पापा की पाकेट खाली हो I

अक्कड़-बक्कड़ बम्बे वो

छुट्टी के दिन आते हैं

सैर-सपाटा करने को I

अब ना जल्दी उठने की झंझट

ना पाठ पढेंगे अब रट-रट

शोर-शराबा धमाचौकड़ी

गप्प-शप्प और चाट-पकौड़ी

उछल-कूद और धमाधम

जी भर कर मौज करो I

अक्कड़-बक्कड़ बम्बे वो

छुट्टी के दिन आते हैं

सैर-सपाटा करने को I

पानी

पानी कितना अनमोल रतन
यह सबका है जीवन-धन
जो प्यासों की प्यास बुझाये
और सूखे पौधों को हर्षाये l

हो छोटा या बड़ा हो कोई
हो रंक कोई या शहंशाह
सभी ही इसकी कीमत जानें
पीकर हो जाते सब ताजा l

जीवन-मरण इसी में होता
इस पर निर्भर सारा संसार
इसकी मिलकर कदर करें हम
जब उपयोग करें हर बार l

जाति-पांति और धर्म भूलकर
हम हर दिन इसके गुन गाते
और डुबकी जो लेते गंगा में
वो मोक्ष सदा को पा जाते l

दूल्हा-घोड़ा

शादी का मौसम आया जब
तो एक दिन न्योता भी आया
मम्मी ने बिटिया को उस दिन
सुंदर से कपड़ों को पहनाया l

बिटिया के मन में था कौतूहल
शादी में जाकर वह देखेगी क्या
दूल्हा होती है क्या चीज़ और
क्या होता है यह शादी-ब्याह l

पहली बार जब उस दिन उसने
किसी की देखी जाती बारात
वह इतनी भोली-भाली सी थी
कि समझ ना पायी पूरी बात l

धूम-धड़ाके से बाराती निकले
और दूल्हे को घोड़े पर लादा
घोड़ा हांफे जाये और उस पर
दूल्हा बैठा जैसे हो शहजादा l

गाजा-बाजा शोर-शराबा पर
दिया ना उसने कोई ध्यान
लगातार ही देख रही थी वह
घोड़े को इतना होकर हैरान l

घोड़ा भी थोड़ा सजा हुआ था
दूल्हे का ढंका था पूरा चेहरा
कर ना पाई पहचान वह ढंग से
चेहरे पर पड़ा हुआ था सेहरा l

चकित हुई वह देख रही थी
दोस्तों के संग सारा हंगामा
भीड़-भाड़ में कहीं खो ना जाये
सोचके हाथ मम्मी का थामा l

पहुँच गयी जब बारात दूर बहुत
तब फिर होश में वह आई थोड़ा
मम्मी ने पूछा कैसा लगा दूल्हा
बेटी बोली 'अच्छा था दूल्हा-घोड़ा l