Friday 24 September 2010

परीक्षा के दिन

प्यारे बच्चो,

जब भी आप लोगों की स्कूल में परीक्षाये होती होंगी तो उम्मीद है कि आप सभी लोग खूब मन लगाकर पढ़ाई भी करते होंगे. पर्चे देने के तुरंत बाद अगले पर्चे की तैयारी में जुट जाते होंगे. शिक्षाकाल हमारे जीवन में बहुत महत्व रखता है. जीवन में यही समय ही तो होता है मेहनत करके अपना आने वाला भविष्य सुखमय और उज्जवल बनाने का. यदि खूब मन लगाकर परीक्षा दें तो मेहनत जरूर सफल होती है. अपने में आत्म बिश्वास रखिये तो अच्छे अंक लेकर उतीर्ण होंगे. आपकी दिनचर्या का क्या हाल रहता है ? मेरे ख्याल से उन दिनों आप लोग इम्तहान की वजह से सुबह जल्दी उठते होंगें. और फिर तैयार होकर पेपर देने जाते होंगें. मन में कुछ घबराहट सी भी लगती है अधिकतर लोगों को परीक्षा के दिनों में चिंता के मारे..मुझे भी लगा करती थी. किन्तु आप लोग अपने मन को शांत रखें और लगन से पढ़ाई करें घर पर. और बीच में थक जाने पर कुछ आराम कर लें तो दिमाग में ताजगी आ जाती है. खाने में भी अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखें..मानसिक ताकत के लिये आप लोग रोज दूध, मेवा व फल भी लें. समय पर सुबह उठ कर तैयार हों और नाश्ता आदि करके निकलें घर से आप लोग और शांत मन से पेपर दें. घबराने की कोई जरूरत नहीं. और परीक्षा देने जाते समय अपने बड़ों का आशीर्वाद जरूर लें. मुझे पता है कि आप सभी तन-मन से डटकर अब पढ़ेंगे और अच्छा परिणाम पायेंगे. मेरी तरफ से आप सबको तमाम शुभकामनायें.

शिक्षक और शिष्य

बच्चों, आओ आज सबसे पहले हम उस महान शिक्षक व नेता की याद में कुछ पलों को मनन करें और सर झुका कर उन्हें नमन करें जिनकी जीवन-गाथा और सीखों से आज भी देश के तमाम शिक्षकों व विद्यार्थिओं को प्रेरणा मिलती है और जिनका जन्म-दिवस ही हर साल 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है..ऐसी ही उनकी मनोकामना थी. तो जैसा की आप सबको पता ही होगा की उनका नाम है..राधा कृष्णन. हाँ, बच्चों, टीचर ही हमें शिक्षा देते हुये जीवन में सही मार्ग दर्शन कराता है. उनकी दी हुई तमाम सीखें और बातें हमें सदैव याद आती हैं और जीवन में कई बार उनसे आगे बढ़ने में प्रेरणा मिलती है. और शिक्षक का कर्तव्य है की बच्चों को सही मार्ग-दर्शन करायें. बच्चे एक छोटे से बीज के समान होते हैं यदि बीज को ठीक से मिटटी में न जमाया जाय और सिंचाई न की जाय व खाद न दी जाय तो वह ठीक से अंकुरित और विकसित नहीं हो पाते हैं. उसी प्रकार यदि बचपन की प्रारंभिक शिक्षा के दौरान यदि शिक्षक के द्वारा ठीक से शिक्षा ना मिली या विद्यार्थी ही आलसी और कामचोर निकला तो वह आने वाले भविष्य में अपने जीवन में मजबूती से कदम रखने में असमर्थ होगा. कई बार हमें स्वयं अपनी छिपी हुई प्रतिभा के बारे में नहीं पता होता है किन्तु शिक्षक के प्रोत्साहन से वह श्रोत खुद व खुद वह चलता है. शिक्षक और शिष्य का स्कूल में शिक्षा के दौरान आपस में वही सम्बन्ध होता है जो एक बच्चे का घर के जीवन में माता-पिता के साथ. शिक्षक की महानता होती है की बिना भेद भाव किये हुये सभी शिष्यों को समान रूप से ज्ञान की बातें बताना, उनपर समान रूप से दृष्टि रखना और शिक्षा के स्तर को बनाये रखना. मेरा जन्म-स्थल एक छोटी सी जगह थी जो अब काफी विकसित हो गयी है. लेकिन जगह और स्कूल चाहें छोटे हों पर शिक्षक के महान बिचार और ज्ञान देने से कोई फर्क नहीं पड़ता. उसी प्रकार मेरे भी स्कूल में हर विषय के शिक्षक थे. हाँलाकि कंप्यूटर आदि के बारे में तब कोई नहीं जानता था. किन्तु मैं अपने सभी शिक्षकों का बहुत मान करती थी और हमेशा कहना मानने को तत्पर रहती थी. मैं बचपन से ही पता नहीं क्यों अनजाने में ही अन्याय के विरुद्ध बोलने लगती हूँ. कई बार सब टोक भी देते हैं इस बारे में. किसी का दुख भी नहीं वर्दाश्त होता मुझसे. मैं अपना होमवर्क हमेशा पूरा रखती थी जिससे टीचर खुश रहते थे.एक बार मेरी मुख्य-अध्यापिका बीमार पड़ गयीं जो मेरे घर के कुछ पास रहती थीं. तो मैं जाकर उनसे पूछकर उनके घर का काम कर देती थी और अक्सर जाकर उनके हाल पूछती थी. उनके कोई बच्चे नहीं थे और कोई देखभाल करने वाला भी न था..शादी भी नहीं करी थी उन्होंने. शिक्षक माता-पिता के समान ही तो होते हैं. यदि वह हर बच्चे का हित चाहते हैं तो हम क्यों नहीं उन्हें माता-पिता का दर्जा देकर उनकी मुसीबत में काम आ सकते हैं? आओ, हम सब आज अपने-अपने शिक्षकों के सम्मान में कुछ देर को नत मस्तक हों. वही हमारे जीवन की आधार शिला हैं.

कद्दू की कुछ बातें

आओ बच्चों, आज कुछ कद्दू के बारे में बात करें. इन दिनों सर्दी का मौसम आ रहा है और सब्जी-बाज़ार में कद्दुओं का आगमन भी शुरू हो रहा है. वैसे तो कद्दू को सब लोग अधिक पसंद नहीं करते हैं. जैसे की बिचारे चुकंदर की दशा निरीह हो जाती है वैसे ही इसे भी खाने में कुछ लोग संकोच करते हुये नाक-भौं चढ़ाते रहते हैं..खासतौर से बच्चे. तो आइये आज कुछ इसके बारे में बताऊँ और इसकी अच्छाइयों के बारे में भी तो शायद आप लोग इसके बारे में अपनी राय बदल दें.

कद्दू कई तरह के और कई रंग के होते हैं. छोटे-बड़े, लम्बे, हलके या भारी-भरकम भी. और यह कई रंगों में पाये जाते हैं. इनके रंग नारंगी और लाल ही नहीं बल्कि हरे, पीले और सफ़ेद भी होते हैं. इसकी तुलना घिया या तुरई के स्वाद से की जाती है. और अपने भारत में हर प्रांत में लोग इसे अलग नामों से जानते हैं..उत्तर प्रदेश में गंगाफल या सीताफल नाम से भी जाना जाता है.

अफ्रीका में कद्दू काफी छोटे और कई प्रकार के होते हैं. सुना जाता है की सबसे पहले कद्दुओं को मध्य अमेरिका में उगाया गया था. अमेरिका में इसको बहुत पसंद करते हैं और तरह-तरह से बना कर खाते हैं. और वहाँ पर कद्दुओं की पैदावार बहुत होती है. वहाँ के कुछ क्षेत्रों में कद्दुओं का उत्पादन अत्यधिक होता है. अमेरिका में 90% कद्दू की पैदावार तो वहां पर इलिनोइस नाम की एक जगह है वहाँ होती है. हर साल वहाँ कद्दू के सम्मान में तमाम शहरों में बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है और मेला लगता है. और तमाम तरह से इसका खाने में इस्तेमाल किया जाता है. इंग्लैंड, अमेरिका, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया व कुछ अन्य देशों में भी ' हल्लोवीन ' नाम का दिवस अक्टूबर महीने की आखिरी तारीख को मनाते हैं जिसमें कद्दू को तराश कर उसे कभी लालटेन का आकार देकर उसके अन्दर मोमबत्ती जलाते हैं तो कभी उसे किसी भूत-प्रेत की शकल में तराशते हैं. कद्दू से कई प्रकार के केक, पाई, पुडिंग, सूप, बिस्किट आदि बनाते हैं. फिर वह लोग रिश्तेदारों व मित्रों को निमंत्रित करते हैं खाने पर, या पार्टी देते हैं. जाने-पहचाने लोगों में केक व पुडिंग बना कर भेजते हैं. और हाँ, इंग्लैंड व अमेरिका में कद्दू को पम्पकिन कहते हैं.

शताब्दियों पहले ग्रीक के लोगों ने कद्दू को ' पेपोन ' नाम दिया जिसका ग्रीक भाषा में मतलब होता है ' बड़ा खरबूजा '. फिर फ्रेंच लोगों ने इसे ' पोम्पोन ' नाम दिया और इंग्लैंड में ' पम्पिओन ' कहा. किन्तु जब शेक्सपिअर ने अपने उपन्यास ' मेर्री वाइव्स ऑफ़ विंडसर ' में इसका पम्पकिन नाम से जिक्र किया तब से सभी अंग्रेज व अमेरिकन इसे पम्पकिन कहने लगे. और बच्चों आप लोगों ने यदि ' सिंदरैला ' नाम की कहानी सुनी या पढ़ी है तो याद करिये कि उसमें एक बड़े कद्दू की शकल की बग्घी में ही सिंदरैला बैठ कर डांस-पार्टी में गयी थी. है ना?

अब कद्दू के बारे में कुछ विशेष बातें हैं जानकारी के लिये. जैसे कि:

1. इससे कई प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बन सकते हैं.

2. इसके बीजों में प्रोटीन और आयरन पाया जाता है और बीजों को भून व छील कर खाते हैं. और खाना बनाते समय भी बीजों का कई तरह से उपयोग किया जा सकता है.

3. इसके अन्दर के गूदे में विटामिन ए व पोटैसियम होता है.

4. इसके फूलों को भी खाया जा सकता है.

5. कद्दू को फलों की श्रेणी में रखा जाता है.

6. इसमें 90 % पानी होता है.

अपने भारत में कुछ लोग तो इसे बहुत प्रेम से खाते हैं. और जब इसका मौसम हो तो इसका भरपूर उपयोग किया जाना चाहिये.
उत्तर भारत में तो इसे कुछ खास पर्वों पर जरूर बनाया जाता है. जैसे की होली-दीवाली पर या फिर व्रत-उपवास के समय भी..सब्जी, हलवा या खीर के रूप में.

टर्की और बैल

आओ सबसे पहले आप सबको इस चिड़िया के बारे में बता दूँ. टर्की एक बड़ी और मोटी चिड़िया होती है जो जमीन पर ही चलती है और उड़ नहीं पाती. यह चिडिया इंग्लैंड, अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि देशों में पायी जाती है. और 25 दिसम्बर को क्रिसमस के दिन वहाँ के लोग इसे पकाकर भी खाते हैं, ऐसा वहाँ के लोगों में रिवाज है. हमारे यहाँ भारत में होली - दीवाली पर हम लोग तरह-तरह के पकवानों के साथ पूरी कचौरी भी बनाते हैं वैसे ही वह लोग खाने में तरह-तरह की चीजें बनाते हैं पर उस दिन ख़ास तौर से खाने में टर्की की प्रमुखता रखी जाती है.

अब आप कहानी भी सुनिये:

एक बार एक टर्की टहलते हुये कहीं जा रही थी और जाते-जाते रास्ते में एक बैल को देखकर रुक गयी और उससे बातचीत करने लगी. और फिर बातों-बातों में एक पेड़ को देखकर बोली, '' मेरा मन बहुत करता है कि मैं इस पेड़ की सबसे ऊँची डाली पर जाकर बैठूँ, लेकिन मुझमें इतनी ताकत नहीं है कि मैं उड़ सकूँ.'' इसपर बैल बोला, '' मेरा कहना मानो तो तुम अगर मेरा चारा खाओ तो तुममें ताकत आ जायेगी, क्यों कि इसमें बहुत पौष्टिक तत्व हैं.'' टर्की ने कुछ सोचा और फिर कुछ चारा खाया और उसे कुछ ताकत महसूस हुई तो फिर वह पेड़ की नीचे वाली टहनी पर जाकर बैठ गयी. अगले दिन उसने थोड़ा और चारा खाया तो और ताकत आई और वह पिछली वाली टहनी से भी ऊँची एक टहनी पर जाकर बैठ गयी. इस तरह रोज-रोज चारा खाकर उसमें इतनी ताकत आ गयी की पंद्रह दिन बाद वह पेड़ की एक सबसे ऊँची शाखा पर जा बैठी. और ठाठ से वहाँ बैठ कर गर्वित होते हुये इधर-उधर देखने लगी. इतने में एक शिकारी उधर से अपने हाथ में एक बन्दूक लिये हुये गुजरा और तुंरत ही उसने टर्की पर गोली चला दी. टर्की छटपटाकर नीचे आ गिरी और मर गयी.

इस कहानी का अभिप्राय यह है बच्चों की किसी के कहने पर किसी तरह कहीं पहुँच भी गये तो कितनी देर टिक पाओगे वहाँ पर. इस बात पर भी गौर करना चाहिये. टर्की ऊपर पहुँच तो गयी पेड़ पर लेकिन शिकारी के हाथों से न बच सकी, है ना ?

चील और खरगोश

प्यारे बच्चों, आओ आज तुम्हे एक मजेदार छोटी कहानी सुनाती हूँ जिससे कुछ सबक भी सीखा जा सकता है.

एक दिन एक छोटा सा खरगोश कहीं जा रहा था. रास्ते में तमाम खेत पड़े तो वह उन खेतों में बड़ी बेफिक्री से उछलते-कूदते चलने लगा कि अचानक उसकी निगाह एक पेड़ पर बैठी हुई एक आलसी चील पर पड़ी जो वहाँ बैठ कर आराम कर रही थी. खरगोश वहीं रुक गया और उसने चील से पूछा, '' चील जी, आप वहाँ बैठी क्या कर रही हैं.'' तो चील ने उत्तर दिया, '' खरगोश भाई, मेरा मन आराम करने को किया तो मैं यहाँ ऊपर बैठ कर आराम कर रही हूँ, उड़ते-उड़ते बहुत थक गयी हूँ.'' खरगोश बोला, '' मैं भी बहुत थक गया हूँ लेकिन मैं आराम करने के लिये तुम्हारे पास इतने ऊपर नहीं पहुँच सकता क्या मैं यहाँ पेड़ के नीचे बैठ कर आराम कर सकता हूँ?'' चील ने कहा, '' हाँ, हाँ, क्यों नहीं, मुझे तो ऊपर बैठ कर आराम मिल रहा है पर तुम नीचे ही बैठ कर आराम कर लो.'' भोला-भाला खरगोश वहीं पेड़ के नीचे आँखें बंद करके लेट गया और जरा सी देर में ही उसे ठंडी हवा में नींद आ गयी. कुछ देर में एक लोमड़ी उधर से गुजरी और उस सोते हुये खरगोश को देखा तो उसे झपट्टा मार कर दबोच लिया और फटाफट खा गयी. बेचारा खरगोश!!

तो बच्चों इस कहानी से क्या मतलब निकाला आपने? चलो मैं ही बता देती हूँ..वह यह कि दूसरों की नकल करने के लिये उनसे सलाह माँगते समय स्वयं भी अपने बारे में सोचना चाहिये कि किसी की नक़ल करने का परिणाम गलत भी हो सकता है..जैसे की चील की सलाह पर खरगोश अपनी जान गँवा बैठा.

निरीह चिड़िया

एक बार बहुत ही वर्फीले और ठंडे मौसम में आँधी और तूफ़ान भी चल रहे थे. उसी समय सर्दी से बचने के लिये एक चिड़िया दक्छिण की तरफ उड़ रही थी. आँधी में फँसकर वह जमीन पर एक खेत में आ गिरी और बेहोश हो गयी. उसकी देह ठंड के कारण जम सी गयी. कुछ देर बाद वहाँ से एक गाय गुजरी और जहाँ चिड़िया पड़ी थी उसपर गोबर कर दिया, और फिर चली गयी. गोबर की गर्मी पाकर चिड़िया धीरे-धीरे होश में आने लगी और उसे महसूस हुआ की वह गरम बिछौने में लेटीहै और उसके शरीर में गर्मी आ रही है. लेकिन वह इस बात से अनजान थी कि वह गोबर की ढेरी के अन्दर पड़ी हुई है. गर्मी पाकर वह वहाँ इतनी खुश महसूस कर रही थी कि वहीं पर वह काफी देर आराम से पड़ी रही. और फिर अचानक ख़ुशी के मारे गाने लगी. इतने में एक बिल्ली पास से निकली और उसने चिड़िया के गाने की आवाज सुनी तो वह इधर-उधर खोजबीन करने लगी और जब गोबर की ढेरी में से आवाज़ आती सुनाई दी तो उसने गोबर को हटा कर देखा और वहाँ उसे चिड़िया दिखी. उसे देखते ही उसके मुँह में पानी आ गया और वह तुरंत उस चिड़िया को उठा कर उसे झट से खा गयी.
अब इस कहानी से तीन बातों की शिक्षा मिलती है:

1. यदि कोई अनजाने में तुम्हें नुकसान पहुंचाये तो वह इंसान तुम्हारा दुश्मन नहीं होता जैसे की गाय ने चिड़िया पर अनजाने में गोबर कर दिया था.

2. और यदि कोई तुम्हे कभी किसी मुसीबत से निकाले तो हर समय उससे अच्छाई की उम्मीद भी न रखो जैसे की बिल्ली ने निकाला तो चिड़िया को गोबर से किन्तु उसके इरादे कुछ और थे. क्योंकि वह उसे गोबर से निकाल कर खा गयी.

3. और कोई ऐसी मुसीबत की घड़ी हो जहाँ चुप रहने की जरूरत हो तो बच्चों, अपना मुँह बंद रखना चाहिये. यदि चिड़िया ने अपना मुँह बंद रखा होता तो वह बच गयी होती और थोड़ी देर में गोबर में से बाहर आकर उड़ गयी होती.

जन्माष्टमी

बच्चों, आज जन्माष्टमी है..भगवान् कृष्ण का जन्मदिन. आप लोगों को इसके उपलक्ष्य में मेरी अनेकों शुभकामनायें. तो आओ, आप सबको मैं उनके जन्म के बारे में एक कहानी भी सुनाती हूँ...

करीब 5००० साल पहले मथुरा में उग्रसेन नाम के एक राजा राज्य करते थे. उनकी प्रजा उन्हें बहुत चाहती थी और सम्मान देती थी. राजा के दो बच्चे थे..कंस और देवकी. उनका लालन-पालन बहुत अच्छी तरह से किया गया..दोनों बच्चे बड़े हुये और समय के साथ उनकी समझ में भी फरक आया. कंस ने अपने पिता को जेल में डाल कर गद्दी हासिल कर ली और राज्य करने लगे. वह अपनी बहिन देवकी को बहुत प्यार करते थे. और कंस ने देवकी का ब्याह अपनी सेना में वासुदेव नाम के व्यक्ति से कर दिया. लेकिन कंस को देवकी की शादी वाले दिन पता चला कि उनकी बहिन की आठवीं संतान से उनकी मौत होगी. तो कंस ने देवकी को मारने की सोची. किन्तु वह अपनी बहिन को बहुत चाहते थे इसलिये मारने की वजाय उन्होंने देवकी और वासुदेव दोनों को जेल में डाल दिया. वहाँ देवकी की कई संतानें हुयीं और सातवीं को वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिनी की कोख से जन्म लेना पड़ा...इसीलिए जब कृष्ण जी का जन्म हुआ तो उनको सातवीं संतान करके बताया गया. जिस रात उनका जन्म हुआ था उस रात बहुत जोरों की आँधी चल रही थी और पानी बरस रहा था..भयंकर बिजली कौंध रही थी..जैसे कि कुछ अनर्थ होने वाला हो. जेल के सारे रक्षक सोये हुये थे उस समय और जेल के सब दरवाज़े अपने आप ही खुल गये..आँधी-तूफान के बीच बासुदेव कृष्ण को एक कम्बल में लपेटकर और एक टोकरी में रख कर चुपचाप गोकुल के लिये रवाना हुये जहाँ उनके मित्र नंद और उनकी पत्नी यशोदा रहते थे..उधर यशोदा और नंद के यहाँ एक कन्या का जन्म हुआ. और जब वह यमुना नदी पार कर रहे थे तो पानी का बेग ऊपर उठा उसी समय वासुदेव की गोद में से कृष्ण का पैर बाहर निकला और पानी में लगा तभी यमुना का पानी दो भागों में बंटकर आगे बढ़ने का रास्ता बन गया.बासुदेव ने उसी समय उस बच्चे की अदभुत शक्ति को पहचान लिया. वह फिर गोकुल पहुँचे और कंस की चाल की सब कहानी नंद और यशोदा को बताई. नन्द और यशोदा ने कृष्ण को गोद लेकर अपनी बेटी को बासुदेव को सौंप दिया जिसे उन्होंने मथुरा वापस आकर जेल में कंस को अपनी आठवीं संतान कहकर सौंप दिया और कंस ने उस कन्या को मार दिया. सुना जाता है की मरने के समय वह कन्या हवा में एक सन्देश छोड़कर विलीन हो गयी कि '' कंस को मारने के लिये आठवीं संतान गोकुल में पल रही है.'' लेकिन कंस ने सोचा की जिससे उनकी जान को खतरा था वह राह का काँटा हमेशा के लिये दूर हो गया है और अब उन्हें कोई नहीं मार पायेगा. कृष्ण जी नंद और यशोदा के यहाँ पले और बड़े हुये और उन्हें ही हमेशा अपना माता-पिता समझा. और बाद में उन्होंने अपने मामा कंस का बध किया और मथुरा की प्रजा को उनके अत्याचार से बचा लिया.
जन्माष्टमी सावन के आठवें दिन पूर्णिमा वाले दिन मनाई जाती है क्योंकि इसी रात ही कृष्ण जी का जन्म हुआ था. हर जगह मंदिरों में बहुत बड़ा उत्सव होता है..सारा दिन भजन-कीर्तन होता रहता है. कान्हा की छोटी सी मूर्ति बनाकर रंग-बिरंगे कपड़ों में सजाकर एक सोने के पलना में रखकर झुलाई जाती है. घी व दूध से बनी मिठाइयाँ खायी व बाँटी जाती हैं..घरों में लोग व्रत रखते हैं..कुछ लोग तो सारा दिन पानी भी नहीं पीते जिसे '' निर्जला व्रत '' बोलते हैं और रात के 12 बजे के बाद ही कुछ खाकर व्रत को तोड़ते हैं और कुछ लोग दिन में फलाहार खा लेते हैं..लेकिन नमक व अन्न नहीं खाया जाता इस दिन. दही और माखन कन्हैया की पसंद की चीज़ें थीं जिन पर वह कहीं भी मौका पड़ने पर चुरा कर उनपर हाथ साफ़ किया करते थे..और बेशरम बनकर सबकी डांट खाते रहते थे. तो इस दिन कई जगहों में लोग एक मटकी में दही, शहद और फल भर कर ऊँचे पर टाँगते हैं और फिर कोई व्यक्ति कान्हा की नक़ल करते हुये उस मटकी को ऊपर पहुँच कर फोड़ता है. कुछ लोगों का विश्वास है कि उस टूटी हुई मटकी का टुकड़ा अगर घर में रखो तो वह बुरी बातों से रक्षा करता है.
कृष्ण जी के बारे में जगह-जगह रास लीला होती है और झाँकी दिखाई जाती है..जिसमें मुख्यतया पाँच सीन दिखाये जाते हैं : 1. कन्हैया के जन्म का समय 2. वासुदेव का उन्हें लेकर यमुना नदी पार करते हुये 3. वासुदेव का जेल में वापस आना 4. यशोदा की बेटी की हत्या 5. कृष्ण जी का पालने में झूलना.
कुछ घरों में जन्माष्टमी का उत्सव कई दिनों तक चलता रहता है.

सावन आया

सावन की फैली हरियाली
झूमे हर डाली मतवाली
बचपन की याद दिलाती
आँखें फिर भर-भर आतीं
जब छायें घनघोर घटायें
झम-झम बारिश हो जाये
हवा के ठंडे झोंके आते थे
सब आँगन में जुट जाते थे
गर्जन जब हो बादल से
हम अन्दर भागें पागल से
पानी जब कहीं भर जाये
तो कागज की नाव बहायें
मौसम का जादू छा जाये
कण-कण मोहित हो जाये
गुलपेंचे का रूप बिखरता
हरसिंगार जहाँ महकता
एक नीम का पेड़ वहाँ था
और जहाँ पड़ा झूला था
झगड़े जिस पर होते थे
पर साहस ना खोते थे
बैठने पे पहल होती थी
और बेईमानी भी होती थी
जब गिर पड़ते थे रोते थे
दूसरे को धक्का देते थे
माँ तब आती थी घबरायी
और होती थी कान खिंचाई.

अपना देश

आओ हम सब सोचें मिलकर
अपने जीवन के बारे में
जीवन में क्या बनना हमने
क्या देखा है अपने सपनों में

हम आजाद देश के वासी हैं
आजादी से ही रहेंगे हम
कभी घमंड न करना बच्चों
पर गर्व रहे जरूर हरदम

देश भक्ति और सदाचार के
गुण हम हर दिन ही गायें
हँसी ख़ुशी के बादल हम पर
खुशियाँ हर पल बरसायें

उन महान लोगों ने मिलकर
आजाद यह देश कराया था
आजादी के झंडे को सबने
मिलकर शीश झुकाया था

लड़ी लड़ाई देश की खातिर
और जंजीरों से मुक्त किया
रहे नहीं गुलाम किसी के
और अंग्रेजों को भगा दिया

अच्छे-अच्छे काम करो तो
देश की उन्नति जिससे हो
सुन्दर रखो भावना अपनी
तुम इस देश के हिस्से हो

ऊँच-नीच और भेद-भाव को
मन में ना तुम अपने रखना
कभी किसी को नहीं सताना
मिलजुल कर तुम सब रहना

मेहनत करके जीवन में तुम
कुछ अच्छा बनके दिखलाओ
दीपक जैसे टिमटिम करके
हर दिन प्रकाश को फैलाओ.

आजाद देश के पंछी हम

हाँ, आज का दिन छुट्टी का दिन.

आजाद देश के पंछी हम
जय हिंद ! वन्दे मातरम् !

सुबह-सुबह सो के उठी मुन्नी
बोली मेरी स्कूल से छुट्टी
भैया की कालेज से छुट्टी
पापा की आफिस से छुट्टी
आज सबकी है मौज सारा दिन

हाँ, आज का दिन छुट्टी का दिन.

आजाद देश के पंछी हम
जय हिंद ! वन्दे मातरम् !

आज खेलेंगें, टीवी देखेंगे
परेड निकलेगी, गाने सुनेंगे
सड़कों पर जलूस निकलेगा
भरत नाट्यम डांस भी होगा
होगी तब ताक धिना-धिन

हाँ, आज का दिन छुट्टी का दिन.

आजाद देश के पंछी हम
जय हिंद ! वन्दे मातरम् !

प्राइम मिनिस्टर की स्पीच होगी
पापा डांटेंगे कमरे में चुप्पी होगी
मम्मी किचन में जायेगी
आज वो खीर हलवा खिलायेगी
आसमान में पतंगें उडेंगी अनगिन

हाँ, आज का दिन छुट्टी का दिन.

आजाद देश के पंछी हम
जय हिंद ! वन्दे मातरम् !

आजाद देश के वासी

बच्चो आओ तुम्हे सुनाऊँ
इस देश की एक कहानी
आजादी को पाने को
दीं लोगों ने कितनी क़ुरबानी
भारत है आजाद हमारा
और तुम इस देश के वासी
गाँधी, सुभाष और लोग भी
थे आजादी के अभिलाषी
उनके संग न जाने कितने
लोगों ने भी त्याग किया था
अंग्रेजों के चंगुल से फिर
अपने देश को छुड़ा लिया था
थे गुलाम सब लोग यहाँ
और पराधीन था देश
जंजीरों से जकड़ा हर कोई
फरक हुआ परिवेश
हर किसी की जुबान पर
था स्वतंत्रता का नारा
तब भारत माता के लालों ने
अंग्रेजों को ललकारा
अब तुम सब बच्चे मिलकर
करना अच्छे-अच्छे काम
अच्छी बातों को ही अपनाना
करना देश का ऊँचा नाम
अनहित की न कभी सोचना
ना करना दुखी किसी को
है भविष्य तुम्ही से इसका
ना अब देना इसे किसी को.

कुछ इधर-उधर की बातें

आओ बच्चों करें आज कुछ इधर-उधर की बातें हम
घर में क्या-क्या होता है और बदला-बदला है मौसम

दादा जी के खर्राटों की आवाजें सुनके बिल्ली आ जाती
दरवाजे के बाहर बैठी वह म्याऊँ-म्याऊँ कर शोर मचाती

होमवर्क करने को तो अकसर गुड्डू जाता है टाल
पर नहीं ऊबता देखकर दिनभर टीवी पर फुटबाल

बादल भी जाने लगते हैं जब बारिश के रुक जाने पर
फूल-पात से झिलमिल बूँदें दूब पे तब जाती हैं झर

झरते है पेड़ों से पत्ते जब पतझर के आ जाने पर
बिखरे सेवों को ले जाती हैं तभी गिलहरी कुतर-कुतर

पर पतझर के आने से पहले तो आने वाली है दीवाली
लक्ष्मी पूजन की सभी सजायें हम सब मिलकर थाली

फिर कुछ दिन बाद मनेगा मिलकर सबका क्रिसमस
ढेरों से उपहार मिलेंगे और गले मिलेंगे सब हँस-हँस

आओ सबसे पहले दीवाली का पूजन कर दिये जलायें
झिलमिल-झिलमिल करे रोशनी सारे बच्चे नाचें-गायें

जी भर के मस्ती सभी उड़ाओ खाओ खूब सभी पकवान
लेकिन फोड़ो कोई पटाखा तो रहना तुम सभी सावधान

तुम सबका भविष्य हो उज्जवल जगमग करे दीप जैसा
अपने घर के दीप तुम सभी सभी भारत चमके तारों जैसा.

जगमग आई दीवाली

फिर से जगमग करती आई
आओ हम त्योहार मनायें
मिलजुल कर सब साथ में हम
दीपावली के दिये जलायें

हँसी-खुशी से सबके घर में
होगा लक्ष्मी जी का पूजन
उलसित होकर करें आरती
और सब मिलकर करें नमन

अन्दर-बाहर, ऊपर-नीचे
टिम-टिम कर दीप जलें
प्रेम-भावना लेकर आओ
हम सब फिर से गले मिलें

मावस की काली रजनी में
दिखता नहीं उजाला जब
दीपक जला-जला कर देखो
कितना उजियारा हो तब

भाग-भाग कर सारे बच्चे
दिये जला कर दिखें निहाल
फोड़ फुलझड़ी और पटाखे
खुशी से वो होते हैं बेहाल

सबके घरों में बनते हैं खूब
इस दिन कितने सारे पकवान
उनको खाते हैं सब मिलजुल
फिर खाते ढेरों से मिष्ठान

चारों तरफ सजावट दिखती
चहल-पहल लगे दूकानों में
प्रेम-भाव से क्लेश दूर हों
अपनों में और अनजानों में

आओ हम सब अपने मन के
मिलजुल दूर करें सब अँधियारे
समझ-बूझ और अपनापन हो
और अंतरमन में भरें उजियारे

आशा की किरणें बनें रोशनी
ना आये निराशा कभी भी पास
करें कामना अच्छाई की और
अपने मन में रखें हम विश्वास.

अपने प्यारे बापू

कितने अच्छे थे अपने बापू
सादा सा जीवन था उनका
लड़े लड़ाई सच की ही वह
ध्यान हमेशा रखा सबका

हिंसा ना भाती थी उनको
साथ अहिंसा का अपनाया
सबके लिये थी दया-भावना
बड़ा काम करके दिखलाया

भारत को स्वतंत्र करने में
जीवन लगा दिया था सारा
अंग्रेजों को बाहर करने में
ऊँचा रखा था अपना नारा

दुबली-पतली काया थी पर
हिम्मत उनमें थी लोहे जैसी
मन के बहुत ही पक्के थे वह
बातें न करते थे ऐसी-वैसी

सादा सा खाना खाते थे
सादा सा ही था पहनावा
बोल-चाल और घमंड का
किया नहीं था कभी दिखावा

सरल स्वभाव बड़ा था उनका
अडिग रहे वह निश्चय पर
सत्य और न्याय को पूजा
उनको नहीं था किसी का डर

साबरमती के संत में थी
सच्ची सी अपनी पहचान
करी भलाई देश की अपने
और फिर हो गया वह कुर्बान

अंग्रेजों के चंगुल से छीना
देश किया अपना आजाद
शांति और अहिंसा की सीखें
सदा रखेंगे हम सब रखें याद.

मेरा नाम हरी मटर

ताज़ी-ताजी सी हरी मटर
मैं खाई जाती हूँ सबके घर
जब सर्दी का मौसम है आता
हर कोई तब मुझको खाता

जब कोई जाता है बाज़ार
थैला भर लाता है हर बार
फिर छीलें हैं सब मिलकर
मैं उछल के आती हूँ बाहर

दाने बिखर-बिखर जब जाते
मुझे उठा सभी चबा जाते
पकने तक ना करते इंतज़ार
खाने को सब रहते बेकरार

आलू मटर की सादी सब्जी
हर घर में है बन जाती
मटर-मूंग को पीसो साथ
तो बनें कोफ्ते मेरे ख़ास.

सूप बना लो डाल पोदीना
फिर धीरे-धीरे उसको पीना
मटर-पनीर सभी को भाये
खाने को उसे मन ललचाये.

गोभी-आलू के संग तरकारी
और रोटी साथ में खाओ करारी
आलू की टिक्की में भरो मटर
खाओ चटनी संग चटर-पटर.

कभी बनाओ अगर कचौरी
पिट्ठी भर दो उसमें मेरी
भरो समोसे के भी अंदर
गाजर के संग लगती सुंदर.

मशरूम को डाल बने पुलाव
सबको उससे रहे लगाव
पालक के संग यदि बनें कबाब
खाने में उनका नहीं जबाब.

सलाद में खाओ मुझे उबाल
तो अच्छे रहते सबके हाल
और टमाटर संग बनाओ
तो हो जाता है बहुत कमाल.

पौष्टिकता से भरा है मेरा तन
जैसे ए, बी, सी, और आयरन
प्रोटीन, फाइबर, पोटासियम
जिंक, कॉपर, और मैग्नेशियम.

मैं कद्दू लाल

लाल, पीला, हरा, सफ़ेद
भारी-भरकम गोल मटोल
गूदा कितना भरा है अंदर
देखोगे मुझे जब तुम खोल

बीच में सभी सब्जियों के
दिखता एक बड़ी सी ढोल
कोई तो मुझे पूरा ले जाता
कोई करे टुकडों का मोल

कद्दू राजा कह सकते हो
सर्दी का मौसम ही भाये
कई प्रकार से मैं बनता हूँ
सबका मन मुझपे ललचाये

मोटी खाल उतर जाती जब
लगूँ पपीते सा तब दिखने
कभी हरा भी घर पर लाओ
जब मैं आऊँ पैंठ में बिकने

छिलका और बीज हटा कर
हर कोई है मुझको खाता
सब्जी और सूप में खाओ
हलवा भी मेरा बन जाता

खट्टा सा भी बना के देखो
साथ कचौरी के भी खाओ
केक और पिज्जा में डालो
दोस्तों को भी खूब खिलाओ

बैंगन और टमाटर के संग
मुझे अगर तुम कभी पकाओ
अचरज होगा मुझपर तुमको
जब स्वाद निराला मेरा पाओ

अगर मुझसे बनें पकौड़े
दही संग भी मुझको खाओ
कढ़ी में यही पकौड़े डालो
तो मजा निराला मुझमें पाओ

सीधा-सादा सा दिखता हूँ
पर जब हो जाती है पहचान
सब मुझ पर मोहित हो जाते
और फिर रह जाते हैं हैरान.

Thursday 23 September 2010

मेरा नाम बैगन राजा

लोग अधिकतर जानें मुझको
रंग बैगनी बैगन मेरा नाम
बेगुन कभी नहीं कोई कहना
सबको मुझसे रहता है काम

टोपी पहने लगता हूँ राजा
पर बैठा ना रहता बेकार
मुझे सभी घर लाना चाहते
जब भी वह जाते बाजार

जब बैठा होता मैं थाली में
तो इधर-उधर लुढक जाता
लम्बा-छोटा या गोल मटोल
भोला-भाला मैं भुन जाता

नहीं मतलबी पर हूँ बदनाम
नाम बुरों संग भी जुड़ जाता
जब कोई लेता बदल पार्टी
'थाली का बैगन' कहलाता

जो भी चाहे उधर लुढक जाता
जैसा चाहते मुझे बना लेते
प्याज़-टमाटर संग पक जाता
कभी मुझे अचार बना देते

गोल-गोल से पतले टुकड़े कर
नमक-मिर्च संग बेसन दो घोल
धनिया-प्याज़ का दो कुछ स्वाद
तल डालो गरम पकौड़े गोल

कई सब्जियों को काट मिलाओ
बनता सब्जी का गड़बड़झाला
नये तरीकों में रखो दिलचस्पी
उँगली चाटेगा हर खानेवाला

छोटे कद से भरवाँ बन जाऊँ
डालो सांभर व पिज्जा में भी
रायता और पुलाव बनाओ
उसमें आलू, मटर, और गोभी

स्वाद और कुछ तुम भी ढूँढो
बहुत और से गुण हैं मुझमें
पोटासियम व विटामिन भी है
फायदा देता हूँ ब्लड-प्रेशर में.

मैं आलू हूँ

मैं आलू हूँ भई, मैं आलू हूँ
सीधा - साधा गोल - मटोल
स्वाद में सबसे हूँ आला
अधिक ना होता मेरा मोल

मुझको खायें सभी स्वाद से
राजा - रानी हों या हों फ़कीर
मैं सभी सब्जियों का हूँ राजा
छोटा - बड़ा है मेरा शरीर

उगता हूँ जमीन के अन्दर
ले जाते सब मुझको तोल
हर गरीब का पेट भरूँ मैं
ना कभी बड़े मैं बोलूँ बोल

कुत्ता, बन्दर हो या इंसान
सभी को ही मैं भाता हूँ
डाल टमाटर मुझे पकाओ
तो सब्जी मैं बन जाता हूँ

माँ दीदी हो या फिर पापा
बाबू , अफसर हों या लालू
उँगली सभी चाट जाते हैं
चटनी डालो बनूँ कचालू

कभी पकौड़ा बन तल जाता
कभी भून भरता बन जाता
भर दो यदि लोई के अन्दर
तो आलू की पूरी कहलाता

मेरे ही गुण - गान करें सब
चिप्स बने या बने समोसा
आलू की टिक्की में होता
या फिर भर के बनता दोसा

हर दावत में धाक है मेरी
हर बच्चे की मैं चाहत हूँ
बिन मेरे है नीरस भोजन
मैं हर खाने में राहत हूँ

चाट का ठेला ले आते हैं
हर दिन ही जब भैया कालू
सुनकर हाँक सभी फिर आयें
चाहें हो कोई कितना टालू.

मैं गोरी-गोरी मूली

सुंदर सी और हूँ गोरी-गोरी
बहुत तरह के होते हैं आकार
मोती-पतली, छोटी-लम्बी
मैं सदा सलाद में बनूँ बहार

अन्दर-बाहर से एक रंग की
नाम करण से मूली कहलाई
बदन सलोना और जरा लचीला
पैदा होते ही सबके मन भाई

पत्ते भी सबके मन को भाते हैं
उन्हें धो-काटकर बनता साग
उनके ताजे रस का पान करें यदि
तो पेट के रोग जाते सब भाग

यदि सब्जी का हो भरा टोकरा
मैं पत्तों संग उसकी शोभा बनती
गाजर की कहलाऊँ मैं हमजोली
जोड़ी हमदोनो की अच्छी लगती

हर मौसम में मैं मिल जाती
गर्मी हो या हो कितनी ही सर्दी
रंग-रूप को मेरे सभी निहारें
मुझसे ना कोई दिखलाये बेदर्दी

खाना खाने जब सब बैठें तो
'अरे भई, मूली भी ले आओ'
सुनकर मैं भी कुप्पा हो जाती
नीबू-गाजर संग भी खा जाओ

चाहें नमक संग टुकड़े खाओ
या फिर नीबू-सिरके में डालो
और ना सूझे अधिक तो मेरी
आलू संग सब्जी ही पकवा लो

धनिया, मिर्च, टमाटर संग तो
हर घर में जमती है मेरी धाक
पर जब भी काटो छीलो मुझको
महक से बचने को रखना ढाक

घिसकर मुझे मिला लो आटे में
धनिया भी और कुछ चाट-मसाला
गरम-गरम परांठे बना के खाओ
मुझसे स्वाद लगेगा बहुत निराला

शलजम, गाजर, मिर्च, प्याज़ संग
मिलकर बन जाता रंगीन सलाद
मिर्च, धनिया और नीबू भी डालो
फिर मुझे खाकर कहना धन्यबाद.

गाजर के करिश्मे

मैं उगती हूँ जमीन के अन्दर
सब कहते गाजर है मेरा नाम
लाल, नारंगी और पीला सा रंग
और करती हूँ बढ़िया से काम

जो कोई सुनता गुणों को मेरे
रह जाता है वह बहुत ही दंग
अपने मुँह से तारीफ़ कर रही
पर बच्चे होते हैं मुझसे तंग

जो भी मुझे पसंद नहीं करते
वह रह जाते मुझसे अनजान
समझदार तो खा लेते मुझको
पर कुछ बच जाते हैं नादान

मुझे छील-काट कर देखो तो
अन्दर-बाहर पाओ रंग एक से
सबके स्वास्थ्य की हूँ हितकारी
भरी पोटैसियम व विटामिन से।

पर क्यों दूर रहते बच्चे मुझसे
यह बात समझ नहीं आती है
उनकी मम्मी बनाकर मुझको
अक्सर क्यों नहीं खिलाती है

हर प्रकार से स्वस्थ्य रहोगे
चाहें कच्चा ही मुझको खाओ
हलवा-खीर बनाओ मुझसे
और मुरब्बे को भी आजमाओ

गोभी, मटर-आलू संग सब्जी
और गोभी संग डालो दाल में
सूप बने प्याज-धनिया संग
और टमाटर भी उस हाल में

मुझे पकाओ यदि मटर के संग
दो जीरा, नमक-मिर्च का बघार
बटर और ब्रेड के संग भी खा लो
जल्दी से सब्जी हो जाती तैयार

बंदगोभी, मटर और सेम संग
कभी सादा सा लो मुझे उबाल
या जल्दी से सब चावल में डालो
नहीं होगा कुछ अधिक बवाल

कभी केक में डालो मुझे घिसकर
मूली, शलजम संग बनता है अचार
ककड़ी, मूली और हरी मिर्च संग
मैं हर सलाद में भरती नयी बहार.

मेरा नाम टमाटर

मुझे टमाटर कहते हैं सब
खायें दिलवाले और कंजूस
अगर कचूमर निकले मेरा
तो बन जाता पीने को जूस

सब पसंद करते हैं मुझको
लाल-लाल सा रंग है मेरा
मुझको शर्म बहुत आती है
जब कोई छूता चेहरा मेरा

छुरी से कच्चा काट के खाओ
तो बन जाता है मेरा सलाद
चाट-मसाला छिड़क के देखो
आयेगा कितना मुझमें स्वाद

शक्कर डाल के मुझे पकाओ
तो बन जाता हूँ सुर्ख सा जैम
टोस्ट पे लगा के खाते हैं तब
हर दिन मुझको अंकल सैम

नीबू और नमक-मिर्च संग पीसो
तो बन जाती खट्टी चटनी मेरी
और पकाओ जब आलू के संग
तो बन जाता हूँ एक तरकारी

पतला-पतला काटो यदि मुझको
बटर-चीज़ संग भर ब्रेड के बीच
लंच-बॉक्स में रख स्कूल चलो
सैंडविच खाकर सब जाओ रीझ

जोर की भूख लगी अगर लगी हो
तो मैगी में मिला के मुझे उबालो
फिर थोड़ा सा डालो नमक-मसाला
प्लेट में परस के मुझको खा लो.

मेरा नाम चुकंदर बाबू

मुझे देख कर ना डर जाना
दिखने में नहीं इतना सुन्दर
पर मेरा नाम नहीं अनजाना
सब कहते हैं मुझे चुकंदर.

कुछ तो देख इतना डर जाते
कहने लगते ' बाप-रे-बाप '
लगता तब कुछ ऐसा मुझको
उनको सूंघ गया हो सांप.

शलजम, गाजर, मूली, आलू
यह सब लगते मेरे रिश्तेदार
एक सी मिटटी के अन्दर रह
हम सबकी होती है पैदावार.

अगर कभी कोई मुझे खरीदे
घर में सब बच्चे देखें घूर-घूर
जैसे ही मेरा रस आता बाहर
खड़े हो जाते वह मुझसे दूर.

लाल-बैंगनी सा रंग बदन का
नहीं टपकता है मुझसे नूर
पर कभी न कोई मुझपर हँसना
गुणों से हूँ मैं बहुत भरपूर.

कैल्शियम, आयरन, फाइबर
और भरे हैं विटामिन-मिनेरल
अब नहीं मुझे देख घबराना
कार्बोहाइड्रेट भी है मेरे अन्दर.

अगली बार मार्केट जाओ तो
मम्मी के संग तुम भी जाना
मुझे ढूंढ-खरीद कर घर लाओ
फिर मम्मी से कुछ बनवाना.

घबराने की कोई बात नहीं है
छूकर देखो, मुझे हाथ लगाओ
मुझे उबालो, छीलो-काटो और
तरह-तरह से फिर आजमाओ.

कई प्रकार के तरीकों से तुम
खाने को कुछ रंगत दे डालो
अगली बार को सलाद बनाओ
गाजर-मूली संग घिस डालो.

मोटी खाल को छीलो पहले
लम्बी-पतली फाँकें फिर काट
उबला आलू और दही मिलाकर
चाट-मसाला संग बनती चाट.

बैंगन, गोभी, प्याज़ के टुकड़े
धनिया, मिर्च नमक और बेसन
पानी संग मिला कर मुझको
तलना गरम पकौड़े छन-छन.

मिक्सी में बने जूस चीनी संग
फिर जब भी जाओ तुम स्कूल
थर्मस में भर इसको ले जाना
साथ में पीने को कुछ कूल-कूल.

गाजर, प्याज़, मशरूम डालकर
चावल संग सकते मुझे लो पका
सबके संग मिल जुल कर खाओ
तो खाने में बढ़ जाये जायका.

हर मौसम में यदि खाना हो तो
बोतल के सिरके में मुझको रखो
जब अचानक मूड बने खाने का
जल्दी निकाल कर मुझको चखो.

अब ना घूर-घूर कर मुझको देखो
अपने मन पर सब रखना काबू
मेरी बातों पर सब देना ध्यान
मैं हूँ सबका दोस्त चुकंदर बाबू.

मैं ककड़ी पर नहीं कड़ी

नाजुक बदन रंग है धानी
मैं बनती सलाद की रानी
दुबली-पतली और लचीली
कभी-कभी पड़ जाती पीली
सबकी हूँ जानी-पहचानी
मुझमे होता बहुत ही पानी
गर्मी में होती है भरमार
हर सलाद में मेरा शुमार
करते सब हैं तारीफें मेरी
खीरे की मैं बहन चचेरी
हर कोई लगता मेरा दीवाना
हो गरीब या धनी घराना
खाने में करो न सोच-बिचार
हल्का-फुल्का सा हूँ आहार
विटामिन ए, सी और पोटैसियम
सब रहते हैं मुझमें हरदम
मौसम के हूँ मैं अनुकूल
आँखें हो जातीं मुझसे कूल
अंग्रेजी में कहें कुकम्बर
खाते हैं सब बिन आडम्बर
ब्यूटीपार्लर जो लोग हैं जाते
पलकों पर हैं मुझे बिठाते
मुखड़े करती मलकर सुंदर
दूर करुँ विकार जो अन्दर
स्ट्राबेरी संग प्याज़, पोदीना
मुझमें मिलकर लगे सलोना
बटर, चीज़ संग टमाटर
मुझे भी रखो सैंडविच के अंदर
कभी अकेले खाई जाती
कभी प्याज-गाज़र संग भाती
अगर रायता मुझे बनाओ
उंगली चाट-चाट कर खाओ
यदि करते हो मुझको कद्दूकस
तो नहीं फेंकना मेरा रस
गोल-गोल या लम्बा काटो
खुद खाओ या फिर बांटो
सिरके में भी मुझको डालो
देर करो ना झट से खा लो
और भी सोचो अकल लगाकर
सब्जी भी खाओ मुझे बनाकर.

देखो बच्चों

देखो, देखो, देखो बच्चों
देखो चाँद सितारों को
निरख रही हैं सभी
दिशाएँ देखो उन सब चारों को

धरती उपजाती है अन्न
माँ हम उसको हैं कहते
सहती रहती सारे बोझे
हम सब उस पर ही रहते

रात में चमकें चंदा तारे
चमक चांदनी आती है
दिन में फिर सूरज निकले
तो किरने भी मुस्काती हैं

सूरज से गर्मी मिलती है
चंदा से मिलती शीतलता
गंगा का पावन जल देता
सबके मन को निर्मलता

पत्थर से कठोर बनो ना
फूलों से सीखो कोमलता
ना करो घमंड कभी पैसे का
बेबस होती कितनी निर्धनता

सीख-सीख अच्छी बातों को
करो सार्थक जीवन को अपने
संस्कार अच्छे हों तब ही तुम
पूरे कर पाओगे अपने सपने

झगड़ा कभी न करो किसी से
और बुराई करना भी छोड़ो
कभी जरूरत पड़े अगर तो
कर्तव्यों से ना मुंह मोडो

हर दिन कुछ नया सीखकर
आशाओं को जी लो तुम
फूलो से खिलकर मुस्काओ
कभी ना रहना फिर गुमसुम

करो सार्थक यह जीवन अपना
सीखो तुम सब अपनी भूलों से
निश्छल होकर कुछ देना सीखो
धरती नदिया, और फूलों से.

बचपन के वह दिन

आज अचानक लगी खींचने, उस बचपन की डोर
कहा चलो चलते हैं हम, अपने अतीत की ओर

मस्त सुहाने दिनों ने ली, तब फिर से अंगड़ाई
मन में शोर उठा और, फिर यादें सजीव हो आईं

गुजर जाये पर नहीं भूलता है, बचपन का मौसम
जीवन में कुछ क्षण आते हैं, उनमे खो जाते हैं हम

तो चलो आज ले चलती हूँ, मैं सबको अपने साथ
बचपन की उस दुनिया की, कुछ करने को बात

पिछवाड़े के आँगन में था, नीम का पेड़ बड़ा सा
निमकौरी से भरा-भरा और, जहाँ पड़ा झूला था

शीतल छाया में सब बैठें, और कुँआ था उसके पास
पेड़ पपीते और अनार के, और हवा में भरी सुवास

कुछ पेड़ भी थे अमरूदों के, उनमें थी बड़ी मिठास
कुयें का शीतल जल था अमृत, लगती थी जब प्यास

कौओं की काँव-काँव छत पर, आँगन में गौरैयाँ फुदकें
जब डालो चावल के दाने, तो वह सब खाते थे मिलके

फूल-फूल मंडरायें तितली, चढ़ें गिलहरी पेड़ों पर
शाम की बेला में आ जायें, गायें भी वापस घर पर

पात-पात और डाल-डाल को, चूमे समीर जब प्यारा
रात की रानी और बेला से, तब महके आँगन सारा

सुबह-सुबह झरने लगते थे, हरसिंगार के फूल
भरी दुपहरी में उड़ते थे पत्ते, और संग में धूल

जितनी बार छुओ उसको, तो छुईमुई शर्मा जाती
पेडों पर लिपटे गुलपेंचे की, बेल सदा ही इतराती

गुलाबास के पेड़ लगे थे, उस घर की क्यारी में
लाल, गुलाबी सभी तरह के, रंग थे फुलवारी में

जब पड़ोस के पेड़ पे, जामुन के फल आ जाते थे
चढ़कर छत पर हम सब, जामुन तोड़ के खाते थे

करी शिकायत किसी ने, तो माँ डंडा लेकर आती थी
डांट-डपट कर कान खींचकर, वापस वह ले जाती थी

इन यादों में है एक दादी, जो प्यार से हमें बुलाती थी
पिला के ठंडा शरबत हमको, मीठे आम खिलाती थी

घर के पीछे थी पगडंडी, जो जाती थी बागों की ओर
कोयल करे कुहू-कुहू जब, पेडों पर आ जाता था बौर

दूध-जलेबी या हलवा खाकर, हम सब जाते थे स्कूल
झाड़ बेर के रस्ते में और, तालाबों में कमल के फूल

पानी जब बरसे सावन में, छातीं थीं घनघोर घटायें
उछल-कूदकर नाचें हम, और कागज़ की नाव चलायें

होली खेलें रंग की पिचकारी से, चेहरे पर मलें गुलाल
पाँख लगाकर कहीं उड़ गये, जीवन के वह इतने साल

एक सपने सा था वह जीवन, और बचपन का संसार
महक प्यार की थी जिसमें, और आँगन में सदा बहार.